पटना [जेएनएन]। पहले प्री-पीएचडी की परीक्षा ली। मंगलवार को रिजल्ट जारी कर दिया और बुधवार को एडमिशन लेने से इन्कार कर दिया। पटना विश्वविद्यालय ने यह कारनामा किया है। बिहार के सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित इस विश्वविद्यालय के सैकड़ों छात्र मुसीबत में फंस गए हैं।
मुसीबत की वजह यह है कि वोकेशनल कोर्स और बॉयोकेमिस्ट्री विषयों के नियमित शिक्षक ही विश्वविद्यालय के पास नहीं हैं, फिर भी इन विषयों में पीएचडी नामांकन की प्रक्रिया बंद नहीं की गई। कुलपति प्रो. रासबिहारी प्रसाद सिंह ने माना कि प्री-पीएचडी की परीक्षा में शामिल होने के लिए सभी विषयों के अभ्यर्थियों से आवेदन लिए गए थे।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की गाइडलाइन के अनुसार पीएचडी कोर्स नियमित शिक्षक ही करा सकते हैं। व्यवसायिक पाठ्यक्रम में नियमित शिक्षक नहीं हैं। गेस्ट फैकल्टी के सहयोग से पीजी के कोर्स संचालित किए जाते हैं। अब शिक्षकों की बहाली होने के बाद प्री-पीएचडी परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों का नामांकन लिया जाएगा।
सामने आई विश्वविद्यालय प्रबंधन की लापरवाही
व्यावसायिक कोर्स के अभ्यर्थियों का कहना है कि यूजीसी ने 2016 में गाइडलाइन जारी किया था। विश्वविद्यालय को पत्र भी प्राप्त हुआ था। 2017 में ही यूजीसी ने सेवानिवृत्त शिक्षकों से भी पीएचडी कराने से मना कर दिया था। सबकुछ जानते हुए भी फरवरी, 2018 में सभी विषयों के लिए प्री-पीएचडी के लिए आवेदन लिए गए। एमजेएमसी के सुबोध, बॉयोकेमिस्ट्री के अंतरा आदि ने कहा कि उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन को नामांकन लेने की  निश्चित तिथि बतानी चाहिए।
10 विषयों में नहीं होगा रजिस्ट्रेशन
एमजेएमसी, म्यूजिक, रूरल स्टडीज, सोशल वर्क, वीमेन स्टडीज, हर्बल केमिस्ट्री, बॉयोकेमिस्ट्री, बॉयोटेक्नोलॉजी, प्रबंधन, फाइनांस कंट्रोल विषय में प्री-पीएचडी परीक्षा उत्तीर्ण विद्यार्थी पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं करा सकते।
बाकी विषयों में नामांकन में दिक्कत नहीं
हिंदी में 12, मैथली में 18, उर्दू में नौ, अरबी में चार, फारसी में 17, बंगाली में तीन, दर्शनशास्त्र में 31, अंग्रेजी में 60, संस्कृत में 27, राजनीति शास्त्र में 58, मनोविज्ञान में 38, भूगोल में 10, गृह विज्ञान में नौ, अर्थशास्त्र में 40, इतिहास में तीन, समाजशास्त्र में 16, पीएमआइआर में 17, सांख्यिकी में 13, जियोलॉजी में 54, बॉटनी में 67, गणित में 50, केमिस्ट्री में 104, फिजिक्स में 29, जूलोजी में 52, लॉ में 17, एजुकेशन में 11 तथा कॉमर्स में 32 सीटों के लिए आवेदन मांगे गए हैं।
पिछले सत्र में नियमों की हुई है अनदेखी
पिछले सत्र में नियमों को ताक पर रखते हुए व्यावसायिक कोर्स में भी पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन कराए गए हैं। पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. मटुकनाथ चौधरी ने बताया कि जुलाई 2015 में इस पर पत्रकारिता विभाग ने आपत्ति दर्ज कराई थी। पत्र में कहा गया था कि जो प्रोफेसर पत्रकारिता की क्लास नहीं ले सकते हैं, वे पीएचडी कैसे करा सकते हैं? तब तक दो छात्रों का रजिस्ट्रेशन हो चुका था। यह नियम के विरुद्ध था। इतना होने के बाद भी पत्रकारिता के लिए प्री-पीएचडी टेस्ट लेना समझ से परे है।
पीएमओ के पत्र के बाद विश्वविद्यालय की खुली आंख
विश्वविद्यालय प्रशासन ने आरटीआइ के तहत दी सूचना में माना है कि यूजीसी की नियमावली के प्रतिकूल व्यावसायिक कोर्स का संचालन किया जा रहा है। इसकी शिकायत अभ्यर्थी मुकेश कुमार ने प्रधानमंत्री कार्यालय से फरवरी में की थी। पीएमओ से पत्र आने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन की नींद टूटी और एडमिशन पर रोक लगाई गई।
एनओयू ने बंद कर दिया था पीएचडी कोर्स
नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी (एनओयू) के रजिस्ट्रार प्रो. एसपी सिन्हा ने बताया कि यूजीसी की गाइडलाइन स्पष्ट है कि बगैर संबंधित कोर्स में रेगुलर फैकल्टी के पीएचडी कोई भी विश्वविद्यालय संचालित नहीं करा सकता है। इसी आधार पर एनओयू में 2012 से ही पीएचडी कोर्स में नामांकन बंद है।