जमाना तेजी से बदल रहा है, उसके साथ ही इंसान की सोच भी. आजकल माता-पिता और बच्चों में दूरियां आम बात हो गई है. माता-पिता और बच्चे का बरसों पुराना रिश्ता काफी हद तक खत्म हो गया है. जनरेशन गैप के चलते माता-पिता तिरस्कार का शिकार हो रहे हैं.
हाई-टेक संतान अपने माता-पिता को पुराने ख्यालों वाला समझने लगी हैं. लेकिन क्या कभी सोचा है? कि समाज के इस परिदृश्य का नतीजा आने वाले कुछ सालों में क्या होगा? परिवार के मामले में वेस्टर्न कल्चर फॉलो करते-करते हम न पूरी तरह से पाश्चात्य बन पाएंगे और न ही ठीक से हिन्दुस्तानी रह जाएंगे.
कहते हैं बचपन कोरे कागज या गीली मिट्टी की तरह होता है. इसे हम जिस सांचे में ढालेंगे, वैसा ही आकार बनेगा.आज माता पिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती आधुनिक मीडिया प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक खिलौने, टेलीविजन पिज्जा, बर्गर और समाज के बदलते परिदृश्य के बीच बच्चे की परवरिश करना है.
परवरिश एक बच्चे की शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और बौद्धिक विकास, गर्भाधान से वयस्कता तक की प्रक्रिया है. देखभाल की कला विकास की शुरुआत से हमारे समाज में प्रचलित है. माता-पिता को उपने नवजात शिशुओं की देखभाल की भूमिका सौंपी गई है. बच्चों के शुरुआती सालों में अगर आप संवेदनशील देखभाल करते हैं, तो वह आपके साथ गहरा रिश्ता विकसित करते हैं. वह उच्च आत्म सम्मान और अच्छे नैतिक मूल्यों के साथ एक बुद्धिमान, आत्म विश्वास युक्त जिम्मेदार वयस्क बनता है.
कामकाज के चलते वक्त का अभाव रहता है. ऐसे में नन्हे बालक के लिए माता-पिता के पास समय नहीं होता. 1-3 साल की उम्र में जब बच्चे अपने आस-पास के लोगों और रिश्तों को समझने लगते हैं. उस उम्र में उन्हें क्रैच या आया के हवाले कर दिया जाता है. इस उम्र में माता-पिता के उचित समय और प्यार के अभाव में बच्चे के मन में माता-पिता की वो जगह नहीं बन पाती, जो बननी चाहिए.
इससे बच्चों में आत्मविश्वास और आत्म सम्मान की कमी रह जाती है. साथ ही बौद्धिक विकास भी अधूरा रह जाता है काम-काज के बाद थके-हारे माता-पिता घर आते हैं. बच्चे को ज्यादा समय नहीं दे पाते. बच्चे का ध्यान खुद से बंटाने के लिए उन्हे गैजेट पकड़ा देती है. यहां से शुरुआत होती है वर्चुअल दुनिया की.
इसके बाद बच्चों के बढ़ने की उम्र में जब वो नौकरानी की देखरेख में घर पर अपनी इच्छा के अनुसार या दोस्तों की नकल करके इलेक्ट्रॉनिक खिलौने और वीडियो गेम, टेलीविजन, इंटरनेट और अन्य उपकरण का इस्तेमाल शुरु कर देते हैं. समय बीतने के साथ माता-पिता के उचित मार्गदर्शन की कमी की वजह से ऊर्जावान बुद्धिमान बच्चे माता-पिता के नियंत्रण से बाहर चले जाते हैं और परवरिश चुनौती बनने लगती है.
उनकी इच्छाएं बहुत हैं. उनके करियर के लक्ष्य माता-पिता से अलग हैं. वह अपने माता-पिता की तुलना में आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अधिक आसानी से संचालित करने में सक्षम होते हैं. ऐसा कर सकने से उनमें अपने माता-पिता से श्रेष्ठ होने की भावना पनपने लगती है. वे अपने माता-पिता को सुनना नहीं चाहते.
परवरिश संबंधित समस्याओं के पीछे मुख्य कारण उनके द्वारा एकल परिवार प्रणाली को अपनाना है. जिन बच्चों को नौकरानियों को भरोसे छोड़ा जाता है, वे नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं, क्योंकि एकल परिवारों में उन्हें माता-पिता,दादा-दादी, चाचा-चाची का प्यार नहीं मिल पाता. संयुक्त परिवारों में बच्चे अधिक सुरक्षित रहते हैं. एक संयुक्त परिवार मे रहने वाले बच्चे सामाजिक रूप से अधिक सक्षम, बेहतर नैतिक मूल्यों वाले और सहकारी होते हैं.
बच्चों की अप्राकृतिक मांगों के लिए संयुक्त परिवार के सदस्यों द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण बच्चे को समझाने में सक्षम होते हैं. जबकि एकल परिवार में एक मांग पूरी नहीं करने पर बच्चे को गुस्सा आता है और वह जिद्दी बन जाता है. संयुक्त परिवारों के बच्चों को घर के विभिन्न काम अच्छी तरह से आ जाते हैं. वे उन्हें निपुणता, अधिक रचनात्मकता और विश्वास से करते हैं
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